Wednesday, July 21, 2010

क्लासिक सिनेमा ः गंगाजल


बिहार की कानून-व्यवस्था पर बनी शूल की तरह ही प्रकाश झा की गंगाजल भी दर्शक के दिलो-दिमाग को गहरे तक भेदती है. 2003 में प्रकाश झा के बैनर तले रिलीज हुई यह फिल्म बिहार के भागलपुर जिले में बरसों पहले घटित हुए एक घटनाक्रम को दिखाती है. 1980 में भागलपुर के थाने में पुलिसकर्मियों ने 31 अपराधियों की आंखों में तेजाब डालकर उन्हें हमेशा-हमेशा के लिए अंधा बना डाला था.
प्रकाश झा की गंगाजल बिहार के तेजपुर जिले की कहानी कहती है, जहां अजय देवगन की सुपरिटेंडेंट आॅफ पुलिस के पद पर नियुक्ति होती है. तेजपुर में साध्ु यादव की हुकूमत चलती है, पुलिस भी उसके गुलाम है. लेकिन साध्ुा यादव और उसके बेटेे के आतंक वाले इस इलाकें में देवगन अपनी दबंगता और निर्भिकता से कानून राज कायम करते हैं. इस काम में उनकी पत्नी ग्रेसी सिंह और मातहत पुलिस कर्मचारी भी पूरा सहयोग देते हैं.
गंगाजल को बॉलीवुड की आॅल टाइम क्लासिक फिल्मों में इसलिए शुमार किया जाना चाहिए, क्योंकि यह फिल्म देश के सबसे भ्रष्ट राज्य की कानून-व्यवस्था की सच्चाई उजागर करती है. यह पिफल्म बताती है कि किस तरह अपनी जिंदगी जी रहा आम आदमी, उद्योगपति, पुलिसकर्मी यहां तक कि मीडियाकर्मी भी भ्रष्ट कानून व्यवस्था का शिकार होता है. यह फिल्म पुलिस और नेताओं के गठबंधन को पूरी निर्ममता से सामने लाती है. ई. निवास की शूल की तरह ही गंगाजल भी यह बताती है कि देश के राजनेताओं ने किस तरह कानून-व्यवस्था को अपनी रखैल बनाया हुआ है. किस तरह वे कानून का इस्तेमाल अपने फायदे के लिए करते हैं.
गंगाजल इसलिए भी क्लॉसिक फिल्म है, क्योंकि यह जमीन से जुड़ी कहानी को पूरी ईमानदारी के साथ पर्दे पर उकेरती है. अजय देवगन पुलिस अधिकारी है, लेकिन वे टिपिकल मुंबईया हीरों की तरह दस-बीस गुंडों को मारते-पीटते नहीं है, बल्कि उन गुंडों से डरकर जीने वाले लोगों के दिलों में कानून-व्यवस्था के प्रति भरोसा और गुंडों के खिलाफ खड़े होने का साहस दिखाते हैं.
अगर आप भी अपने राज्य, शहर या कस्बे की कानून-व्यवस्था से त्रास्त हैं, तो फिर यह पिक्चर जरूर देखिए.

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