Friday, July 30, 2010

समीक्षा ः वंस अपान ए टाइम इन मुंबई


2002 में आई राम गोपाल वर्मा की फिल्म कंपनी को याद कीजिए, जिसमें अजय देवगन और विवेक ओबेराय गुरू-चेले की भूमिका में नजर आते हैं. अजय देवगन अंडरवल्र्ड सरगना, तो विवेक ओबेराय उसका खास गुर्गा. लेकिन आखिर में दोनों एक-दूसरे की जान लेने पर उतारू हो जाते हैं. कुछ ऐसी ही कहानी इस शुक्रवार रिलीज हुई वंस अपान ए टाइम की भी है. एक और संयोग यह कि इस फिल्म में अंडरवल्र्ड सरगना की भूमिका अजय देवगन ने ही निभाई है.
लेकिन रूकिए, इसका मतलब यह नहीं कि वंस अपान ए टाइम कंपनी से मिलती जुलती फिल्म है. दोनों फिल्मों की समानता यही खत्म हो जाते हैं और इसके बाद आप पर्दे पर जो फिल्म देखते हैं, वह खालिस ओरिजनल है. कहानी, डॉयलाग और निर्देशन सभी विभागों में. सबसे अहम बात यह कि मिलन लुथरिया की यह फिल्म पक्की पैसा वसूल है.
फिल्म की कहानी सत्तर के दशक में मुंबई में अंडरवल्र्ड में प्रभुत्व की लड़ाई दिखाती है. अजय देवगन अंडरवल्र्ड के सरगना है, तो इमरान हाशमी एक ऐसा गुर्गा जो तेजीे से अंडरवल्र्ड में अपनी जगह बनाता है. कुछ वक्त के साथ के बाद दोनों एक दूसरे के प्रतिद्वंद्वी बन जाते हैं. इसके बाद आख्रि में बाजी उसी के हाथ लगती है, जिसका गुर्दा ज्यादा मजबूत निकलता है.
कंपनी में भी अजय देवगन ने इसी तरह की भूमिका निभाई थी,, लेकिन इस फिल्म में वे अभिनय की एक और रेंज दिखाते हैं. अंडरवल्र्ड विषयों पर भले ही संजय दत्त ज्यादा फिल्में करते हों, लेकिन ऐसी फिल्मों में करिश्माई अभिनय करवाना हो तो बस अजय देवगन को ले लीजिए. यह बंदा अब हर रोल में कहर ढाने लगा है, चाहें वह गोलमाल श्रंखला की कॉमेडी फिल्में हो या प्रकाश झा की फिल्में. जहां तक इमरान हाशमी की बात है, तो यह उनके कॅरिअर का सर्वश्रेष्ठ अभिनय है. हैरानी होती है कि इतने काबिल अभिनेता को भट्ट कैंप के बाहर फिल्में क्यों नहीं मिलती. शायद इस पिक्चर में जानदार अभिनय के बाद इंडस्ट्री के दूसरेे निर्माता-निर्देशकों की भी इमरान के मामलें में आंखें खूले.
पिक्चर में दो हिरोईनें भी है. कंगना राणावत खूबसूरत लगी है और अजय देवगन के साथ उनकी जोड़ी भी खूब जमी है, बावजूद इसके कि दोनों की उम्र में खासा अंतर है. यही बात प्राची देसाइ्र्र पर भी लागू होती है. वे खूबसूरत भी लगती है और अभिनय से आश्चर्य में डाल देती है. वहीं, रणदीप हुड्डा इस फिल्म में चमत्कार कर देते हैं. अजय और इमरान हाशमी के बीच भी उनकी मौजूदगी फिल्म में हर कहीं नजर आती है. यह उनके कॅरिअर की भी सर्वश्रेष्ठ फिल्म है.
बतौर निर्देशक यह मिलन लूथरिया की अब तक की सर्वश्रेष्ठ फिल्म है. सत्तर के दशक की दुनिया दिखाने वाली इस पिक्चर में उनके सामने कई चुनौतियां थी, लेकिन वे खरे उतरे हैं.
खास बात ः अंडरवल्र्ड की ठायं-ठायं के बीच इस फिल्म का सुमधुर गीत-संगीत भी इसकी एक बड़ी खासियत है. गाने बीच में ठूंसे हुए भी नहीं लगते.

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