Friday, July 23, 2010

फिल्म समीक्षा ः खट्टा-मीठा में कुछ भी नहीं मीठा


अगर आप अक्षय कुमार और प्रियदर्शन की जोड़ी वाली कोई भी फिल्म देखने जाएं तो आप एक बात के लिए तो बिल्कुल निश्चिंत रहते हैं कि फिल्म में कॉमेडी का भरपूर डोज होगा. आखिरकार इस जोड़ी ने दर्शकों को हेराफेरी,, दे दना दन, भागमभाग जैसी बेहतरीन कॉमेडी फिल्में दी है.
इस हप्ते रिलीज हुई खट्टा-मीठा को देखते वक्त भी यही उम्मीद रहती है कि फिल्म खूब हसांएगी,, खूब गुदगुदाएगी.
लेकिन अफसोस कि जैसे-जैसे 2 घंटे 40 मिनट की यह फिल्म आगे बढ़ती जाती है, दर्शक अपने आप को कोसने लगता है. उसे गुस्सा आता है खुद पर कि आखिर क्यों वह अक्षय कुमार और प्रियदर्शन केे नाम देखकर इस फिल्म को देखने आ गया. जी हां, खट्टा-मीठा में मीठा कुछ भी नहीं है. यह फिल्म न तो इस जोड़ी की पिछली फिल्मों की तरह गुदगुदाती है, न ही प्रशासनिक अमलें की कड़वी हकीकत को सामने ला पाती है, जिस थीम पर यह फिल्म बनी है.
जब आप व्यवस्था पर कटाक्ष करने वाली पिक्चर बनाते हैं, तो सबसे पहली जरूरत यह होतीे है कि आप मुद्दें को पूरी ईमानदारी से सामने लाए और कहानी को उसी के इर्द-गिर्द घूमाते रहे. लेकिन अफसोस कि इस पिक्चर में कहानी सिरे से गायब है. कहानी कभी सिस्टम पर प्रहार करती है, तो दूसरे ही पल प्रेमी-प्रेमिका के किस्सों में उलझ जाती है.
और हां, इस फिल्म की सबसे बड़ी कमजोरी यह है कि इसमें अक्षय कुमार और नायिका त्रिशा के बीच प्यार-रोमांस को बहुत ही चलताऊ अंदाज में निपटाया गया है. वैसे भी प्रियदर्शन की फिल्मों में प्यार-रोमांस को ज्यादा तवज्जो नहीं दी जाती है और इस पिक्चर में तो बिल्कुल भी नहीं दी गई है.
यह पिक्चर प्रियदर्शन के लिए भी नींद से जागने की चेतावनी देती है. प्रियन कॉमेडी में बेशक मास्टरी हासिल कर चुके हैं, लेकिन उनकी फिल्मों में कहानी को बड़ी तेजीे से भूला दिया जा रहा है. भागमभाग, दे दना दन जैसी फिल्मों में कॉमेडी तो बहुत थी, लेकिन कहानी का अता-पता नहीं था.
खट्टा-मीठा भी इसी तरह की पिक्चर है. इसमें कहानी के नाम पर कुछ भी नहीं है. ऐसा लगता है मानो कई दृश्यों को एक-साथ जोड़कर ढाई घंटे की पिक्चर बना दी गई है.
इसलिए भले ही आप प्रियदर्शन-अक्षय कुमार के पक्के प्रशंसक है, फिर भी इस पिक्चर से दूर ही रहिए और दुआ कीजिए कि अगली बार वे एक अच्छी कहानी वाली पिक्चर लेकर हाजिर हों.

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