Wednesday, July 14, 2010

फिल्मकार, जो भुला दिए गए


बॉलीवुड में एक पुरानी कहावत है ः जो दिखता है, वो बिकता है. और जो नहीं दिखता, मतलब जो बिकाऊ नहीं रह जाता है, उसे रातों-रात भुला दिया जाता है. इस चमक-धमक में बने रहना खासा मुश्किल है और जो वक्त के साथ तालमेल नहीं बिठा पाते हैं, वे धीरे-धीरे इस चकाचैंध की दुनिया से ओझल हो जाते हैं. बॉलीवुड से जुड़े सभी लोगों के साथ यही होता है फिर चाहे वे निर्देशक हो, निर्माता हो या हीरो-हिरोईन. सभी को इंडस्ट्री में टिके रहने के लिए हर दिन जूझना पड़ता है और जो संघर्ष नहीं कर पाता है उसे इस ग्लैमरस दुनिया से बाहर फेंक दिया जाता है.
सबसे पहले बात करते हैं, उन निर्माता-निर्देशकों की जो कुछ अरसा पहले तक बॉलीवुड के आकाश में चमकते सितारे थे, लेकिन आज पूरी तरह ओझल हो चुके हैं. सबसे पहले ध्यान आता है, नब्बे के दशक के शीर्ष निर्माता वासु भगनानी का. नब्बे के दशक के उस दौर में गोविंदा की कॉमेडी फिल्मों की तूती बोला करती थी और निर्देशक डेविड धवन उस समय के सबसे बिकाऊ और सफलता की सौ फीसदी गारंटी देने वाले निर्देशक हुआ करते थे. वासु भगनानी ने इन्हीं दो के साथ मिलकर कईं ब्लॉकबस्टर फिल्में दी. नब्बे के दशक में इस तिकड़ी ने इंडस्ट्री को कुली नम्बर वन, बड़े मियां छोटे मियां, बीवी नम्बर वन जैसी कामयाब फिल्में दी. बतौर निर्माता वासु भगनानी ने अन्य सितारों के साथ भी बीवी नम्बर वन, मुझे कुछ कहना है जैसी कामयाब फिल्में देकर इंडस्ट्री के नम्बर वन निर्माता का तमगा भी हासिल कर लिया था. लेकिन दर्शकों के फिल्मों का टेस्ट बदलने के साथ ही गोविंदा और डेविड धवन भी नकार दिए गए तो वासु भगनानी का धंधा भी चैपट हो गया. पिछले पांच साल में उन्होंने कोई कामयाब फिल्म नहीं दी है. पिछले साल ही उनकी कल किसने देखा और डू नॉट डिस्टर्ब जैसी फिल्में टिकट खिड़की पर औध्ेंा मूंह गिर गई. कामयाबी उनसे दूर है, तो इंडस्ट्री के बिकाऊ सितारों ने भी उनसे दूरियां बना ली है. अपने बेटे जैकी को उन्होंने कल किसने देखा में लांच किया, तो इस फिल्म में मेहमान भूमिका करने से भी इंडस्ट्री के कई बड़े सितारों ने मना कर दिया. फिल्म जैसे-तैसे रिलीज हुई और किसी बड़े सितारें के न होने से पिट गई. अब तो वासु भगनानी को सितारो के पीछे भागना पड़ रहा है. नब्बे के दशक का यह हिट निर्माता अपने बेटे जैकी को लेकर अब एक और फिल्म बनाना चाहता है, ताकि बेटे का कॅरिअर पटरी पर आ जाए. इस बार भी फिल्म में मेहमान भूमिका के लिए भगनानी ने अक्षय कुमार से बात की, लेकिन खिलाड़ी कुमार ने उनकी नाकामी को देखते हुए साफ इंकार कर दिया. इसके बाद यह लगभग तय हो गया है कि नब्बे के दशक का निर्माता नम्बर वन अब गुमनामी के अंधेंरे में खो जाएगा.
कुछ ऐसा ही हाल जेपी दत्ता का भी है. जेपी दत्ता, यानी वह निर्देशक जिसने बार्डर, रिफ्रयूजी जैसी फिल्में बनाई है. कारगील एलओसी नामक फिल्म में तो उन्होंने इंडस्ट्री के 28 से भी ज्यादा छोटे-बड़े नायकों को काम करने के लिए मना लिया था. जेपी दत्ता की उस फिल्म में मानों पूरी इंडस्ट्री ही इकट्ठा हो गई थी. तब जेपी दत्ता की फिल्म इंडस्ट्री में तूती बोलती थी. लेकिन अब हालात उनके लिए भी बदल गए हैं. दत्ता की पिछली फिल्म उमराव जान टिकट खिड़की पर औंधे मूंह गिरी थी. और इंडस्ट्री का रिवाज है कि यहां टिकट खिड़की पर नाकाम साबित हुए लोगों को कोई नहीं पूछता. सो, जेपी दत्ता के साथ भी यही हो रहा है. वे भारत-पाकिस्तान युध पर आधारित एक और फिल्म बनाना चाहते हैं, लेकिन इस बार उनकी फिल्म में 28 तो दूर, एक भी बड़ा सितारा काम करने को तैयार नहीं है. कुछ समय पहले उन्होंने नए कलाकारों को लेकर फिल्म बनाने की घोषणा की, लेकिन कोई भी पफायनेंसर निवेश करने को ही तैयार नहीं हुआ. थक-हारकर जेपी दत्ता ने उस फिल्म को ठंडे बस्ते में डाल दिया है और अब वक्त बदलने का इंतजार कर रहे हैं. वैसे, इंडस्ट्री के चलन को देखते हुए यह लगता नहीं कि जेपी दत्ता का वक्त कभी बदल पाएगा.
नब्बे के दशक में दीवाना, लाडला, जुदाई, दाग जैसी हिट फिल्में देने वाले राजंकवर को भी इन दिनों ऐसे ही हालात का सामना करना पड़ रहा है. नब्बे के दशक में राजंकवर ने बतौर निर्देशक शाहरूख खान के साथ दीवाना जैसी सुपरहीट फिल्म दी थी. उस वक्त जेपी दत्ता और वासु भगनानी की तरह ही राजकंवर के सितारे भी बुलंदी पर थे और इंडस्ट्री का हर बड़ा अभिनेता उनके साथ काम करना चाहता था.
लेकिन अब मल्टीप्लेक्स संस्कृति के दौर में राजकंवर की किस्मत भी उनसे रूठ गई है. इंडस्ट्री का कोई बड़ा सितारा तो अब उनके साथ काम करता नहीं, इसलिए नए कलाकारों को लेकर इस साल उन्होंने एक फिल्म बनाई सदियां. लेकिन उनकी इस फिल्म ने भी टिकट खिड़की पर दम तोड़ दिया और इसी के साथ अपने कॅरिअर को फिर से पटरी पर लाने की उनकी आखिरी उम्मीद भी खत्म हो गई.
इंडस्ट्री में वासु भगनानी, जेपी दत्ता और राजंकवर जैसे दर्जनों निर्माता-निर्देशक है. उन्होंने इंडस्ट्री को कईं नए सितारे दिए, कईयों की किस्मत चमकाई. लेकिन अब जब उनकी किस्मत रूठी हुई है, तो उनके साथ कोई नहीं है. चकाचैंध वाले बॉलीवुड की शायद यही सबसे बड़ी सच्चाई है कि यहां बुरे वक्त में कोई साथ नहीं देता है.

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