Thursday, July 1, 2010

बड़े सितारे नही,ं अच्छी कहानी चाहिए...



दुनिया के सबसे बड़े फिल्म उद्योग के तौर पर विख्यात बाॅलीवुड इन दिनों खस्ताहाल है. पिछले तीन सालों से एक के बाद एक बड़़े बजट की फिल्मों की टिकट खिड़की पर नाकामी ने मुनाफे को रसातल में पहुंचा दिया हेे. एक अनुमान के मुताबिक पिछले तीन सालांें में बजट की फिल्मांे की नाकामी के चलते बाॅलीवुड को सात सौ करोड़ रूपए से ज्यादा का नुकसान उठाना पड़ा है. 2010 में तो हालात और भी ज्यादा खराब नजर आ रहे ह. काइट्स, रावण जैसी बड़े बजट की फिल्मांे के टिकट खिड़की पर धराषायी होने से बाॅलीवुड को इन दोनो फिल्मों से ही 150 करोड़ से ज्यादां का नुकसान झेलना पडं़ां हे.
ंबाॅलीवुड के ंिलए इन फिल्मांे की नाकामी से भी बड़ा सदमा है, इन फिल्मों से जुड़े बड़े सितारो की नाकामी. अगर शाहरूख, सलमान, आमिर खान, सैंेफ अली खान, अक्षय कुमार, रितिक राषन और शाहिद कपूर को इंडस्ट्री के शीर्ष आधा दर्जन अभिनेताओं की श्रेणी में शुमार किया जाए, तो पिछले दो सालों में इन सितारों की फिल्मों के टिकट खिड़की पर प्रदर्षन को देखकर अंदाजा लगाया जा सकता है, कि आखिर क्यों नब्बे के दषक में मुनाफें की ओर देखने वाला बाॅलीवुड एक बार फिर घाटे के दौर से गुजर रहा है. पिछले दो साल में शाहरूख खान की बिल्लु बार्बर और दूल्हा मिल गया जैसी फिल्में टिकट खिड़की पर औंधे मूंह गिरी है. वहीं, सलमान खान की मैं और मिससे खन्ना, नमस्ते लंदन जैसी फिल्में कोई करिष्मा नहीं दिखा पाई. सैफ अली खान के खाते में भी पिछले दो साल में कुर्बान जैसी नाकाम फिल्म दर्ज है. वहीं अक्षय कुमार ने पिछले दो साल में चांदनी चैक टू चाइना, दे दना दन, ब्ल्यू जैसी नाकाम फिल्में दी है, तो शाहिद कपूर के खाते में भी चांस पे डांस, पाठषाला जैसी असफल फिल्में आई है. वहीं दो साल में एक फिल्म करने की रणनीति पर चलने वाले रितिक रोषन की बहुप्रतिक्षित काइट्स भी इसके निर्माताओं के लिए कटी पतंग ही साबित हुई.
ऐसे में सवाल यह उठता है कि आखिर बड़े सितारों की करिष्माई छवि के बावजूद आखिरकार ये फिल्में नाकाम क्यों हुई.? हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि बाॅलीवुड में इन सितारों को लेकर किस तरह का आकर्षण है. बाॅलीवुड में निर्माता, निर्देशक, लेखक, अभिनेत्रियां सभी इन सितारों के साथ काम करने के लिए कतार में खड़े रहते हैं.ये सभी सितारें एक फिल्म के लिए आमतौर पर पांच करोड़ रूपए से भी ज्यादा की फीस वसूलते हैं.
बावजूद इसके अगर इन सितारों की फिल्में टिकट खिड़की पर लगातार नाकाम साबित हो रही है, तो इसके पीछे ऐसी कई वजहें हैं, जिन्हें समझने के लिए निर्माता-निर्देषक तैयार नहीं है. बड़े सितारों की फिल्मों की नाकामी की सबसे बड़ी वजह तो सिनेमाघरों में टिकटों की बढ़ती कीमत है. सीधा सा गणित है, मल्टीप्लेक्स संस्कृति के आगमन के बाद पिछले चंद सालों में टिकटों की कीमत में दो से तीन गुणा तक की बढ़ोतरी हुई है. .चंद सालों पहले तक चालीस-पचास रूपए में मिलने वाले टिकट अब डेढ़, दो सौ रूपए तक पहुंच गई है. सो, वे दर्षक जो पहले सस्ते टिकटों के दौर में अपने पसंदीदा सितारें की औसत फिल्मों को देखने भी पहुंच जाया करते थे, अब इन घटिया फिल्मों से दूर ही रहने लगे हैं. आज के दौर में परिवार सहित एक मल्टीप्लेक्स में फिल्म देखने जाने पर अमूमन हजार रूपए से ज्यादा ही खर्च आता है, जो कि इस महंगाई के दौर में आम आदमी के लिए संभव नहीं है. दूसरी वजह यह है कि निर्माता, निर्देषक इन बड़े सितारों को साईन करने के बाद फिल्म की कहानी, संगीत और अन्य दूसरी चीजों को बिल्कुल ही नजरअंदाज कर देते हैं. नतीजा यह होता है कि ऐसी फिल्मों में सितारों का लुक, डाॅयलागबाजी, मारधाड़, रोमांस, नाच-गाना तो खूब होता है, लेकिन कहानी दूर-दूर तक नजर नहीं आती. सो, दर्षक अपने पसंदीदा सितारे की फिल्म देखने एक बार तो हिम्मत करके पहुंच भी जाते हैं, लेकिन उसके बाद उस फिल्म को देखने की हिम्मत कोई नहीं जुटा पाता. पिछले दो साल में बड़े सितारों और बड़े बजट की लगभग सभी फिल्मों का यही अंजाम हुआ है. चांदनी चैक टू चाइना, ब्ल्यू, काइट्स इन सभी फिल्मों ने टिकट खिड़की पर पहले तीन दिन तो खूब कमाई की, लेकिन जैसे-जैसे दिन गुजरते गए, इन फिल्मों की घटिया कहानी के चलते दर्षक भी दूर होते गए.
मतलब बिल्कुल साफ है, बाॅलीवुड को अपनी रणनीति में तत्काल बदलाव करने की सख्त जरूरत है. निर्माता-निर्देषकों को करोड़ो रूपए वसूलने वाले सितारों के पीछे भागने के बजाए अपनी फिल्म की कहानी पर जोर देना होगा. कहानी अच्छी होगी, तो गुमनाम अभिनेताओं वाली फिल्में भी चल जाएगी, जैसा कि बीतें सालों में आमिर, ए वेडनसडे, खोसला का घोंसला जैसी फिल्मों ने साबित भी किया है. सो, बाॅलीवुड के लिए यह सितारों की चकाचैंध से बाहर आने का वक्त है.
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