Thursday, July 15, 2010

भुला दिए गए अभिनेता


निर्माता-निर्देशक ही नहीं, बॉलीवुड में दर्जनों ऐसे भूला दिए गए सितारे भी है, जो अपने दौर में लाखों-करोड़ों लोगों के नायक हुआ करते थे. लेकिन या तो बदलते वक्त के साथ वे कदमताल मिलाकर चल नहीं पाए, या फिर शुरूआती सफलता के बाद कामयाबी उनसे हमेशा-हमेशा के लिए दूर चली गई. नतीजा यह हुआ कि कुछ समय के लिए कामयाबी और शोहरत के शीर्ष पर रहने के बाद हमेशा के लिए गुमनामी के अंधेरे में खो गए.
ऐसे अभिनेताओं में सबसे पहले राहुल रॉय का नाम आता है. 1990 में प्रख्यात फिल्म निर्देशक महेश भट्ट ने राहुल रॉय को केंद्रीय भूमिका में लेकर आशिकी नामक फिल्म बनाई थी. अच्छे संगीत, बढ़िया कहानी और उम्दा निर्देशन के बूते आशिकी उस साल की सबसे कामयाब फिल्म साबित हुई थी. खासकर फिल्म के गानों ने पूरे देश में हंगामा मचा दिया था और फिल्म के गायक कुमार सानु, गायिका अनुराधा पोडवाल और संगीतकार नदीम-श्रवण सभी रातों-रात संगीत की दुनिया के सबसे चमकते सितारे बन गए थे. सितारा तो तब राहुल रॉय का भी खूब चमका. आशिकी की धमाकेदार कामयाबी के बाद राहुल को इंडस्ट्री में हाथों-हाथ लिया गया. हर निर्माता-निर्देशक उनके साथ काम करने के लिए उनके घर, आॅफिस के चक्कर काटने लगा. आशिकी के बाद के सालों में राहुल रॉय ने जुनून, तेरी कहानी फिर याद आई, सपने साजन के, जनम जैसी दर्जनों फिल्में की, लेकिन अफसोस कि उनमें से किसी भी फिल्म को टिकट खिड़की पर कामयाबी नहीं मिल पाई. नतीजा यह हुआ कि राहुल रॉय जितनी तेजी से शीर्ष पर पहुंचे, उतनी ही तेजी से जमीन पर भी पहुंच गए. कुछ और फिल्मों की नाकामी के बाद इंडस्ट्री के लोगों ने भी राहुल से किनारा करना शुरू कर दिया. अब राहुल रॉय फिल्म इंडस्ट्री से पूरी तरह विदा हो चुके हैं. आखिरी बार उन्हें नॉटी बॉय नामक एक सी-ग्रेड की फिल्म में देखा गया था, जिसके बाद राहुल का कॅरिअर हाल-फिलहाल तो थम गया लगता है. 1990 में आशिकी की धमाकेदार कामयाबी के बाद इंडस्ट्री को उम्मीद थी कि राहुल रॉय राजेश खन्ना की तरह ही रोमांटिक हीरों बनकर उभरेंगे, लेकिन अफसोस कि राहुल की कामयाबी पहली फिल्म तक ही सीमित रह गई.
राहुल रॉय की तरह ही कुमार गौरव की भी यही कहानी है. कुमार गौरव को तो बॉलीवुड विरासत में मिला था, उनके पिता राजेंद्र कुमार अपने जमाने के सबसे बड़े सितारे थे. कहा जाता है कि जितनी ब्लॉकबस्टर फिल्में राजेंद्र कुमार ने अपने जमाने में दी, उतनी तो शाहरूख खान और अमिताभ बच्चन ने भी नहीं दी है. इसी वजह से राजेंद्र कुमार को बॉलीवुड का ‘जुबली कुमार’ भी कहा जाता है. जब कुमार गौरव ने जवानी में कदम रखा, तो राजेंद्र कुमार ने अपने बेटे को धमाकेदार ढंग से लांच करने के लिए 1981 में लव स्टोरी नामक पिक्चर बनाई. राहुल रॉय की आशिकी की तरह ही कुमार गौरव की लव स्टोरी भी अच्छे गीत-संगीत और रोमांटिक कहानी के चलते उस साल की सबसे कामयाब फिल्म साबित हुई. जुबली कुमार के बेटे कुमार गौरव रातों-रात स्टार बन गए. लेकिन उनकी किस्मत भी पहली फिल्म के बाद ही रूठ गई. बाद के सालों में कुमार गौरव ने तेरी कसम, लवर्स, रोमांस, हम है लाजवाब, आल राउंडर्स जैसी दर्जनों फिल्में की, लेकिन फिर भी वे अपनी पहली फिल्म की कामयाबी को नहीं दोहरा पाए. बेटे के गिरते कॅरिअर ग्रॉफ को देखते हुए राजेंद्र कुमार ने एक बार फिर उनके लिए पिक्चर बनाई- नाम. इसमें उन्होंने अपने दामाद संजय दत्त को भीे लिया. उस वक्त संजय दत्त एक गुमनाम सितारे से ज्यादा कुछ नहीं थे. नाम 1986 में रिलीज हुई और साल की सबसे बड़ी ब्लॉकबस्टर साबित हुई, लेकिन कुमार गौरव का दुर्भाग्य यह रहा कि इस फिल्म की कामयाबी का पूरा श्रेय संजय दत्त ले गए और कुमार गौरव एक बार फिर खाली हाथ ही रह गए. इसके बाद भी कुमार गौरव ने गुंज, आज, गैंग जैसी फिल्मों में अपनी किस्मत आजमाई, लेकिन उनके हाथ नाकामी ही लगी. आखिरकार, थक-हारकर कुमार गौरव ने भी फिल्मों से किनारा कर लिया. कई सालों के बाद कुमार गौरव के बारे में पिछले साल सुनने में आया कि वे मॉय डेडी स्ट्रांगेस्ट नामक एक फिल्म में काम कर रहे है. लेकिन इस फिल्म का भी आजतक कुछ पता नहीं चला.
1991 में सुभाष घई जैसे महान निर्देशक की फिल्म सौदागर के साथ अपने कॅरिअर की शुरूआत करने वाले विवेक मुश्रान भी बॉलीवुड के लिए ‘वन फिल्म वंडर’ ही साबित हुए. सौदागर एक बड़े बजट की फिल्म थी, इसमें दिलीप कुमार और राजकुमार जैसे महानायक काम कर रहे थे. फिल्म भी साल की सबसे बड़ी हिट साबित हुई और विवेक मुश्रान भी राहुल रॉय और कुमार गौरव की तरह ही रातों-रात स्टार बन गए. लेकिन फिर वहीं कहानी, बाद की उनकी फिल्में एक के बाद एक पिट गई. नतीजतन राम जाने, फस्र्ट लव लेटर, अंजाने जैसी कुछ भुला देने लायक फिल्मों में काम करने के बाद विवेक मुश्रान को भी इंडस्ट्री से रूखसत होना पड़ा. कई सालों की गुमनामी के बाद आजकल वे छोटे परदे पर नजर आने लगे हैं. स्टार प्लस के धारावाहिक सोनपरी, जीटीवी के धारावाहिक किटी पार्टी में वे चरित्र भूमिकाओं मे नजर आते हैं. लेकिन उस सितारा हैसियत को वे सालों पीछे छोड़ चुके है, जो सौदागर फिल्म की रिलीज के बाद नब्बे के दशक में उन्हें हासिल हुई थी.
ऐसा ही कुछ हाल मासूम फिल्म में बाल कलाकार के तौर अपने कॅरिअर की शुरूआत करने वाले जुगल हंसराज का भी हुआ. 1983 में गुलजार की लिखी हुई कहानी पर बनी मासुम अब अंतर्राष्ट्रीय ख्याति प्राप्त निर्देशक शेखर कपूर के कॅरिअर की पहली फिल्म थी. यह फिल्म बड़ी हिट साबित हुई और मान लिया गया कि जवानी में जुगल हंसराज भी बड़े सितारे बनेंगे. लेकिन बतौर नायक मोहब्बतें, आ गले लग जा जैसी चंद फिल्मों के बाद जुगल हंसराज के कॅरिअर का भी वही हश्र हुआ, जो राहुल रॉय, विवेक मुश्रान और कुमार गौरव का हुआ. इंडस्ट्री के सबसे प्रतिष्ठित फिल्मी घराने यशराज कैम्प से जुगल ने बतौर निर्देशक फिर से अपनीे फिल्मी पारी की शुरूआत की. पिछले तीन सालों में उन्होंने बतौर निर्देशक इस कैम्प के लिए रोडसाइड रोमियो और प्यार इंपासिबल जैसी फिल्में भी बनाई, लेकिन दोनों ही फिल्में टिकट खिड़की पर नाकाम रही. इसके बाद बतौर निर्देशक भी अब जुगल के कॅरिअर पर पूर्णविराम लगता नजर आ रहा है.
इंडस्ट्री में ऐसे कई कलाकार हुए हैं, जिन्होंने अपनी पहली फिल्म से सितारा हैसियत हासिल कर ली थी, लेकिन इस अच्छी शुरूआत का फायदा उठाकर वे इंडस्ट्री में अपनी जगह बनाने में नाकाम रहे. नतीजा यह कि आज वे गुमनामी की जिंदगी जीने के लिए मजबूर हैं.

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