Thursday, July 8, 2010

बनती फिल्में, बिगड़ती फिल्में !


इस सप्ताह रिलीज होने जा रही फिल्म मिलेंगे-मिलेंगे से जुड़ी एक दिलचस्प खबर, जो हमें यह बताती है कि बाॅलीवुड में कई फिल्में बड़े सितारे, दिग्गज निर्माता कंपनी के बावजूद किस तरह कई सालों तक रिलीज को तरसती रहती है. शाहिद कपूर और करीना कपूर की यह फिल्म, जो 9 जुलाई 2010 को रिलीज हो रही है , 2004 में बनना शुरू हुई थी. तब फिल्म के नायक-नायिका एक दूसरे के प्यार में गिरप्तार थे, इसलिए उन्होंने फिल्म निर्माता बोनी कपूर को एकमुष्त तारीखें दे डाली. दिल्ली, दुबई और थाइलेंड की खूबसूरत लोकेषनों पर फिल्म की शूटिंग हुई और चंद महीनों के भीतर ही शूटिंग लगभग पूरी हो गई. मतलब यह कि सिर्फ पोस्ट-प्रोडक्षन का कामकाज बाकी था. फिल्म के निर्माता बोनी कपूर खूष थे और 23 दिसंबर 2005 को फिल्म रिलीज करने की योजना भी बना ली गई. तभी फिल्म को किसी की नजर लग गई. निर्माता की आर्थिक परेषानियों के चलते फिल्म तय तारीख पर रिलीज नहीं हो पाई. इसके बाद जब बोनी कपूर की आर्थिक दिक्कतें खत्म हुई, तो उन्होंने वापस फिल्म पर ध्यान लगाया. बोनी कपूर जल्द से जल्द फिल्म का पोस्ट-प्रोडक्षन निपटाकर इसे रिलीज कर देना चाहते थे.
लेकिन अफसोस कि तब तक तस्वीर पूरी तरह बदल चुकी थी. असल जिंदगी में प्यार के गीत गाने वाले शाहिद-करीना के बीच अलगाव हो चुका था और यह अलगाव फिल्मी नहीं था. मतलब यह कि शाहिद का साथ छोड़कर करीना ने हमेषा के लिए नए प्रेमी सैफ अली खान को अपना लिया था. सो, पहले एक साल बोनी कपूर लाख कोषिषों के बावजूद शाहिद करीना को फिल्म का पेंचवर्क निपटाने के लिए मना नहीं पाए. खैर, वक्त बीतने के साथ भूतपूर्व प्रेमियों के जख्म भरे, तो वे फिल्म को पूरा करने के लिए तैयार हो गए. फिर भी उनकी एक शर्त थी-वे फिल्म के प्रमोषन के लिए साथ नजर नहीं आने वाले थे और आए भी नहीं. फिल्म के प्रमोषन के लिए एक गीत भी दोनों पर अलग-अलग फिल्माया गया. खैर, यह भी हो गया जैसे-तैसे.
तो, अब छह साल बाद जैसे-तैसे करके बोनी कपूर इस फिल्म को रिलीज कर रहे हैं. 9 जुलाई को फिल्म रिलीज हो रही है और उम्मीद है कि कुछ अच्छा भी कर गुजरेगी टिकट खिड़की. पर.
पर सवाल फिल्म के ठंडे बस्ते में जाने को लेकर हैं. बोनी कपूर कोई छोटी-मोटी हस्ती नहीं है, बल्कि बाॅलीवुड में उनके परिवार को बड़े सम्मान से देखा जाता है. बोनी के पिता सुरिंदर कपूर के जमाने से इस घराने की साख बनी हुई है और अनिल, संजय कपूर के साथ मिलकर बोनी ने निर्माता पिता की ख्याति बढ़ाई ही है. बावजूद इसके एक फिल्म को पूरा करने में बोनी को छह साल लग गए. बोनी कपूर की यह हालत है, तो इंडस्ट्री के छोटे-मोटे निर्माताओं की हालत समझी जा सकती है.
दरअसल, कड़वा सच यह है कि साल में बाॅलीवुड की जितनी फिल्में रिलीज होती है, उससे आधी तो मुहूर्त शाॅट के बाद ही डिब्बे में चली जाती है. कई फिल्मों का मूहूर्त भी होता है, कुछ रिलों तक शूटिंग भी होती है, फिर मामला गड़बड़ा जाता है. चलो, फिल्म पूरी भी हो गई जैसे-तैसे, तो अब रिलीज को लेकर कई दिक्कतें. फिल्म में बिकाउ सितारें नहीं हैं, तो उसे बेचने में निर्माता की जिंदगी हराम हो जाती है. चलों, जैसे-तैेसे फिल्म कई सालों के झटकों के बाद रिलीज भी हो गई ,तो अब वह तो बिचारी पुरानी चीज हो गई है, सो दर्षक उससे दूर ही रहते हैं. आलोचक भी सिरे से खारिज कर देते हैं ऐसी फिल्मों को आउटडेटेड बताकर, और निर्माता बेचारा सिर पिटकर घर बैठ जाता है.
बाॅलीवुड में यह किस्से आम है. लगभग सभी शीर्ष सितारों की कई फिल्में लंबे समय से डिब्बे में बंद है. अक्षय कुमार की ही बात करें, तो बोनी कपूर की पत्नी श्रीदेवी के साथ बरसों पहले इन्होंने एक फिल्म की थी-मेरी बीवी का जवाब नहीं. फिल्म बनती रही,, बनती रही, बस बनती रही, और बरसों बाद 2004 में जाकर रिलीज हुई. तब तक श्रीदेवी का मार्केट खत्म हो चुका था और अक्षय खिलाड़ी कुमार का मार्केट जमा नहीं था, सो फिल्म कब आई, कब गई किसी को पता ही नहीं चला. शाहरूख खान की फिल्म दूल्हा मिल गया भी बरसों से बन रही थी और पिछले साल जैसे-तैसे रिलीज हुई , लेकिन नतीजा वहीं ढाक के तीन पात. सुनील शेट्टी ने बरसों पहले ऐष्वर्या राय के साथ दो फिल्में साईन की थी-हम पंछी एक डाल के और राधेष्याम-सीताराम-लेकिन दोनों ही फिल्में आज तक रिलीज नहीं हो पाई. राधेष्याम-सीाताराम के निर्देषक अनीज बज्मी थे, जो इसक बाद नो एंट्री, वेलकम जैसी दर्जनों हिट फिल्में बना चुके हैं, लेकिन राधेष्याम-सीताराम आजतक रिलीज नहीं हो पाई. अब बात आज के दौर के दिग्गज फिल्मकारों में गिने जाने वाले अनुराग कष्यप् की. बंदे ने पहली फिल्म लिखी-सत्या. फिल्म गजब की थी, कष्यप भी रातोंरात स्टार बन गए, लेखक होने के बावजूद. लेकिन इसके बाद उन्होंने ब्लेक Úाइडे बनाई, जो कई साल बाद रिलीज हुई. एक और पिक्चर बनाई उन्होंने पांच जो आजतक रिलीज नहीं हुई. इस फिल्म के साथ प्रेमरोग वाली पदमिनी कोल्हापूरे की बहन तेजस्वीनी अपने कॅरिअर की शुरूआत की थी, लेकिन बेचारी की पूरी जवानी इस फिल्म की रिलीज का इंतजार करते ही गुजर गई, बावजूद इसके कि इस फिल्म के निर्माता उनके जीजाजी ही थे यानी कि पद्मिनी के पति टूटू शर्मा.
तो, जनाब, इंडस्ट्री में हजारों ऐसी फिल्में है, जिनकी यही दषा होती है. वे शुरू तो होती है, लेकिन कभी पूरी नहीं हो पाती. पूरी भी हो जाती है, तो रिलीज नहीं हो पाती. रिलीज भी हो गई, तो कमा नहीं पाती क्योंकि तब तक बासी चीज हो जाती है. आखिर ऐसा ही थोड़े कहा जाता है कि उजली दिखने वाली इंडस्ट्री के पीछे घनघोर अंधेरा है.

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