Tuesday, July 27, 2010
भूला दी गई नायिकाएं
बॉलीवुड में हर कदम सोच-समझकर बढ़ाना होता है. जरा कदम डगमगाया नहीं कि आप खेल से बाहर...अभिनेताओं, निर्देशकों, निर्माताओं सभी के साथ यही होता है. बॉलीवुड की चांदनी में चार चांद लगाने वाली अभिनेत्रियों पर भी यह बात लागू होती है. जब इंडस्ट्री पर पकड़ जरा कमजोर हुई, तो तमाम लटकों-झटकों, तमाम मादक अदाओं के बावजूद ये अभिनेत्रियां घर बैठने पर मजबूर हो जाती है. बीते कुछ सालों में बॉलीवुड पर नजर दौड़ाए तो ऐसी दर्जनों नायिकाएं नजर आती है, जिन्होंने अपनी पहली फिल्म या शुरूआती कुछ फिल्मों में खूब कामयाबी हासिल की,, लेकिन बाद में ढेर सारी फिल्मों की नाकामी के बाद अंधियारें में खो गई.
आयशा जुल्का ऐसी ही एक अभिनेत्री थी. नब्बे के दशक में खिलाड़ी,, जो जीता वही सिकंदर, बलमा, रंग और वक्त हमारा है जैसी फिल्मों में काम करने वाली आयशा के कॅरिअर को लेकर उनके प्रशंसकों को खूब उम्मीद थी. खिलाड़ी और वक्त हमारा है में उन्होंने अक्षय कुमार और जो जीता वही सिकंदर में आमीर खान जैसे सितारे के साथ काम किया था. लेकिन इसके बाद की फिल्में नहीं चली उनकी. गलत फिल्मों का चुनाव, गलत निर्देशकों के साथ काम करने का खामियाजा यह हुआ कि वक्त से पहले ही उनका कॅरिअर खत्म हो गया. पिछले कुछ सालों से वे रन, सोचा न था, डबल क्रॉस, उमराव जान जैसी फिल्मों में चरित्र भूमिकाएं करती नजर आई है. हालांकि अभी भी वे मात्र 34 साल की है, लेकिन उनका कॅरिअर एक दशक पहले ही खत्म हो गया था. जाहिर है, जिस तेजी से वे कॅरिअर की बुलंदी पर पहुंची थी,, उसी तेजी से नीचे भी आ गई.
आयशा जुल्का जैसा ही हश्र नगमा का भी हुआ. 1990 में बागी फिल्म में उन्होंने सलमान खान जैसे बड़े सितारे के साथ अपने कॅरिअर की शुरूआत की थी. फिल्म हिट रही और सलमान खान का कॅरिअर भी चल पड़ा. लेकिन नगमा का कॅरिअर पहली फिल्म के साथ ही रूक गया. इसके बाद उन्होंने यलगार, सुहाग जैसी फिल्मों में संजय दत्त और अक्षय कुमार जैसे बड़े सितारों के साथ भी काम किया, लेकिन कामयाबी उनसे दूर ही रही. हाल ही में वे गंगा नामक एक भोजपुरी फिल्म में अमिताभ बच्चन और रवि किशन के साथ दिखाई दी,, लेकिन उनका कॅरिअर न जाने कब का खत्म हो चुका है. आयशा जुल्का की तरह ही वे भी अभी मात्र 35 साल की है, लेकिन उनका स्वर्णिम दौर एक दशक पहले ही गुजर चुका है.
हालिया कुछ सालों पर नजर दौड़ाएं, तो भूमिका चावला की भी यही दुर्गति हुई. 2003 में आई फिल्म तेरे नाम में वे सलमान खान के साथ नजर आई थी. यह बॉलीवुड में उनकी पहली पिक्चर थी. तेरे नाम 2003 की सबसे बड़ी हिट साबित हुई. सलमान खान के डूबते कॅरिअर को इस फिल्म ने फिर से किनारे लगा दिया. लेकिन भूमिका के लिए यह पहली और आखिरी हिट फिल्म साबित हुई. इसके बाद उन्होंने दिल ने जिसे अपना कहा, फेमेलीे और गांधी माय फादर जैसी फिल्मों में काम किया, लेकिन पहली फिल्म की कामयाबी को वे दोहरा नहीं पाई. आजकल वे दक्षिण की फिल्मों में ही काम करके गुजर-बसर कर रही है.
ऐसा ही हश्र ग्रेसी सिंह का भी हुआ. उनके नाम पर तो मुन्नाभाई एमबीबीएस और लगान जैसी भारतीय सिनेमा की दो सबसे हिट और महान फिल्में दर्ज है. इसके बाद उन्होंने गंगाजल जैसी फिल्म में भी काम किया. लेकिन इन सभी फिल्मों की कामयाबी का फायदा सिर्फ इनके नायकों को हुआ और ग्रेसी सिंह का कॅरिअर गुमनामी के अंधेरों में खो गया. दो साल पहले वे देशद्रोही जैसी सी-ग्रेड फिल्म में नजर आई, जिसके बाद उनके कॅरिअर पर भी पूर्णविराम लग गया.
बत सीधी सी है, इंडस्ट्री में टिके रहने के लिए कई तरह के पापड़ बेलने पड़ते हैं. आपकी किस्मत भी होनी चाहिए उस तरह की और जज्बा की. जिनके पास यह दोनों नहीं होता, वे कुछेक वक्त की चकाचैंध के बाद गुमनामी के अंधेरों में खो जाते हैं. अपनी पहली ही फिल्म से सितारों की तरह चमकने वाली इन अभिनेत्रियों के साथ भी यही हुआ.
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