Wednesday, July 28, 2010

फिल्म समीक्षा ः जाने भी दो यारों


बॉलीवुड के इतिहास में जब भी सर्वश्रेष्ठ कॉमेडी फिल्मों का जिक्र होता है, जाने भी दो यारों का नाम सबसे पहले लिया जाता है. 1984 में रिलीज हुई निर्देशक कुंदन शाह की यह फिल्म इस कदर मनोरंजक है कि दर्शक आज भी हंसने-गुदगुदानें पर मजबूर हो जाते हैं. इस पिक्चर में नसीरूद्दीन शाह और विवेक बासवानी ने प्रमुख भूमिकाएं निभाई थी.
पिक्चर की कहानी कुछ यूं है कि दो दोस्त नसीरूद्दीन शाह और विवेक बासवानी शहर के प्रतिष्ठित हाजी अली एरिया में फोटो स्टूडियो इस उम्मीद से खोलते हैं कि शायद उनका धंधा चल जाएं. आगाज खराब होता है, लेकिन जल्द ही उनकों एक अखबार से काम मिल जाता है. इस दौरान उन्हें पता चलता है कि शहर का म्यूनिसिपल कमिश्नर एक कुख्यात बिल्डर से मिला हुआ है और वे सभी मिलकर शहर की जनता की जिंदगी के साथ खिलवाड़ करते हैं. मध्यांतर तक दोनों को इस मामलें में कई और सुराग मिलते हैं और मिलती है एक लाश, जिसे बिल्डर ने मरवाया है. इस लाश को लेकर वे इंसाफ के दूत बनने निकल पड़ते हैं, लेकिन भ्रष्ट कानून व्यवस्था, पोली अखबार मालकिन और बिल्डरों के चक्कर में पड़कर अपनी जिंदगी के लिए संकट पैदा कर देते हैं. आखिर में उनका भी वहीं हश्र होता है, जो देश में भ्रष्टाचार, सिस्टम के खिलाफ आवाज उठाने वाले आम आदमी का होता है ः उनकी फरियाद सुनने के बजाए उन्हें ही आरोपी करार दिया जाता है.
निर्देशक कुंदन शाह ने इस फिल्म की कहानी बॉलीवुड में कल्लू मामा के नाम से विख्यात सौरभ शुक्ला के साथ मिलकर लिखी थी. पिक्चर को नेशनल स्कूल आॅफ ड्रामा यानी एनएसडी ने प्रोड्यूस किया था. इस पिक्चर की सबसे बड़ी खासियत इसकी कहानी है. कहानी ऐसी उम्दा और दृश्य ऐसे करीने से गढ़े हुए कि आप हंस-हंसकर लोटपोट हो जाएं. शुरू से आखिर तक कहानी धाराप्रवाह चलती है और दर्शक पूरी पिक्चर में हंसता रहता है.
एक और खास बात, यह पिक्चर कॉमेडी होने के बावजूद संदेशपरक भी है. आजकल की दे दना दन, वेलकम, हाउसफुल जैसी दिमाग से पैदल कॉमेडी नहीं है, ये फिल्म बल्कि समाज की व्यवस्था पर सवाल उठाती है यह पिक्चर. यह फिल्म सरकारी तंत्र, बिल्डरों, अखबार जगत के गठजोड़ पर निर्ममता से प्रहार करती है और कई सवाल भी खड़े करती है. यह फिल्म बताती है कि भ्रष्टाचार में आकंठ तक डूबे इस समाज में अन्याय के खिलाफ आवाज उठाना कितना महंगा पड़ सकता है.
कुंदन शाह की यह फिल्म आॅलटाइम क्लासिक कॉमेडी तो है ही, एक सार्थक संदेश भी देती है और यही इसे भारतीय सिनेमा की सर्वश्रेष्ठ कॉमेडी फिल्मों में शीर्ष पर पहुंचाती है.

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