Monday, August 9, 2010

क्लासिक सिनेमा ः अंगूर


गुलजार साहब की बात जब भी होती है, तो उनके द्वारा बनाई फिल्मों के लिए होती है. और उनकी फिल्मों की बात होती है, तो आंधी,, मेरे अपने, मौसम, माचिस जैसी हिंदी सिनेमा की श्रेष्ठ फिल्मों की बात होती है. लेकिन इस बीच गुलजार साहब के चाहने वाले यह भूल जाते हैं कि गंभीर मुद्दों को बेहतरीन अंदाज में फिल्माने वाला यह निर्देशक हास्य फिल्मों में भी महारत हासिल रखता था. हास्य पर अपनी पकड़ साबित करने के लिए ही गुलजार साहब ने 1982 में एक पिक्चर बनाई थी अंगूर. इस कॉमेडी पिक्चर में उनके पसंदीदा संजीव कुमार दोहरी भूमिका में थे, तो साथ में देवेन खोटे भी दोहरी भूमिका में. यह फिल्म शुरू से आखिर तक हंसाती है और सबसे बड़ी बात यह कि आज के डेविड धवन, अनीस बज्मी की तरह यह थोपी गई कॉमेडी नहींं है, बल्कि स्थितिपरक कॉमेडी है. कहने का मतलब कि इस पिक्चर में शुरू से आखिर तक परिस्थितियां ही ऐसी घटती है कि आप हंसते-हंसते लोटपोट हो जाए.
कहानी इस पिक्चर की यह है कि एक पति-पत्नी के जुड़वा बच्चे पैदा होते हीे बिैछड़ जाते हैं. मजा यह कि उन्होंने एक जोड़ी जुड़वा बच्चेे भी गोद ले रखे हैं. वे भी बिछड़ जाते हैं. अब कई बरस बाद एक जुड़वा अपने साथी के साथ उसी शहर में आता है ,जहां दूसरा रह रहा है. यही से शुरू होती है हंसा-हंसाकर लोटपोट कर देने वाली स्थितियों की श्रंखला.
इस पिक्चर में मौसमी चटर्जी और दीप्ति नवल भी है हंसाने के लिए. यह एकदम शुध कॉमेडी है और इस कदर हंसाती है कि आप लोटपोट हो जाएं.
इसलिए किसी रविवार अगर घर बैठे ऊंचे दर्जे की कॉमेडी फिल्म देखना है तो बस आप इतना कीजिए ः अपने डीवीडी पार्लर जाकर गुलजार साहब का यह हंसी का पिटारा ले आईए. बड़े उम्दा दर्जे की कॉमेडी है ये साहब...
खास बात ः यह फिल्म महान नाटककार सेक्सपीयर के नाटक कॉमेडी आॅफ एरर्स पर बनी है, लेकिन गुलजार साहब ने इसका इस कुशलता के साथ भारतीयकरण किया है कि बस मजा आ जाता है.

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