Tuesday, June 29, 2010

राम गोपाल वर्मा एक चुका हुआ फिल्मकार


इन्दौर के एक मल्टीप्लेक्स से मैं चंद घंटे पहले ही रामगोपाल वर्मा के बैनर तले रिलीज हुई फिल्म फूंक-2 देखकर बाहर निकला हूं. अप्रेल के महीनें में देष के अन्य हिस्सों की तरह ही मालवा में भी बौखला देने वाली गर्मी पढ़ रही है. लेकिन फिर भी,, मैं इस 45 डिग्री की गर्मी की वजह से नहीं, बल्कि फिल्म की वजह से बौखलाया हूं. वजह, मेरा वह कीमती समय, जो रामू के इस वाहियात सृजन को देखने में खराब हुआ है. चूंकि सत्या, कंपनी जैसी फिल्मों की वजह से रामू का प्रषंसक हो जाना मेरी मजबूरी थी., इसलिए उसी प्रष्ंासक दिल का खयाल रखते हुए मैं आईपीएल के मोह को परे रखते हुए फूंक-2 को देखने पहुंुच गया. लेकिन अफसोस, कि अब मुझे अपने फैसले पर पछतावा हो रहा है. इससे भी बढ़कर मुझे दुख हो रहा है कि कभी मेरे दिल के बेहद करीब रहा रामगोपाल वर्मा नामक यह प्रतिभावान फिल्मकार अब पूरी तरह से मानसिक तौर पर दिवालिया हो चुका है. तो अब ऐसे में मेरा मन करता है कि मैं विचार करूं कि आखिर रामू के कॅरिअर में यह नौबत क्यों आई ? क्यों उसके कट्टर प्रषंसक भी अब उसकी फिल्में न देखने की कसमें खाने लगे हैं ?
आखिर में मैं इस नतीजे पर पहुंचा हूं कि ‘ अति सर्वत्र वर्जयते ’ की पुरानी कहावत वर्मा के ऊपर भी पूरी तरह से लागू होती जा रही है. किसी जमाने में मुंबईयां फिल्म इंडस्ट्री के सबसे विचारषील निर्देषकों में शुमार होने वाले रामू एक के बाद एक वाहियात फिल्मों के बाद अब तेजी से अपनी पहचान खोते जा रहे हैं. दरअसल, रामू ने अपनी प्रयोगवादी निर्देषक की छवि पर इतराते हुए कुछेक साल पहले एक गर्व भरी घोषणा की थी कि आने वाले समय में वे प्रत्येक सप्ताह अपने बैनर की एक फिल्म रिलीज करेंगे. इसका मतलब कि साल में चालीस से भी ज्यादा फिल्में रिलीज करने का दंभ भरा था रामगोपाल वर्मा ने. कुछेक समय के लिए उन्होंने यह कोषिष भी की,. नतीजनत, डरना मना है, डरना जरूरी है, नाच, डी, गायब जैसी दर्जनों वाहियात फिल्में वर्मा की फैक्ट्री से निकली, जिन्होंने उनकी साख पर बट्टा लगाने में कोई कसर नहीं छोड़ी. इसका नतीजा यह हुआ कि कभी इंडस्ट्री का अग्रणी रहा यह फिल्मकार अब पूरी तरह से अछूत हो गया है. अमिताभ बच्चन को छोड़ दे तो इंडस्ट्री का कोई भी बड़ा सितारा रामू के साथ काम करने को तैयार नहीं है. आजम खान, के सेरा सेरा जैसे काबिल निर्माता और फाइनेंसरों ने रामू से किनारा कर लिया हैं. यहां तक कि रामू ने अंतरा माली,, प्रियंका कोठारी जैसी जिन हिरोईनों के चक्कर में अपने कॅरिअर का कबाड़ा कर लिया, वे भी अब उनसे दूर जा चुकी है.
तो रामू अकेला पढ़ गया है. 2001 की बात है, जब मैं जूहू बीच के किनारे स्थित रामू के आॅफिस को बाहर से देखने गया था. उस वक्त रामू का जलवा इस कदर था कि दर्जनों संघर्षरत कलाकार उसके आॅफिस के बाहर खड़े रहते थे. लेकिन अब यह जलवा खत्म हो चुका है. अब रामू ने अपना आॅफिस बदल लिया है. लेकिन उस आॅफिस के सामने ज्यादा भीड़ खड़ी नजर नहीं आती है.
वजह, इंडस्ट्री में रामू को चूका हुआ मान लिया गया है. उनकी पिछली चंद फिल्मों पर नजर डालें तो रण मीडिया पर केंद्रित एक कमजोर फिल्म थी,, फूंक ने दर्षकों को डराने के बजाए हंसाया ज्यादा, तो वहीं अज्ञात तो एक आधी-अधूरी फिल्म थी. जाहिर है, इतनी नाकाबियों के बाद अगर इंडस्ट्री ने रामू के बारे में यह राय बना ली है, तो इसमें कोई आष्चर्य नहीं है. यही दुनिया का रिवाज है.
और दुनिया के रिवाज के मुताबिक रामू अब एक चुका हुआ फिल्मकार है.

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