Thursday, September 2, 2010

सदाबहार गुलजार


बांद्रा के प्रतिष्ठित पॉली हिल इलाके के नरगिस दत्त रोड़ पर स्थित बोस्कियाना नामक आशियाना सामने की सड़क से गुजरने वाले उन राहगीरों, जो मुंबईयां पिफल्म इंडस्ट्री में थोड़ी भी दिलचस्पी रखते हैं, का ध्यान बरबस ही अपनी ओर खींच लेता है. इसकी वजह यह है कि बोस्कियाना नामक इस आशियानें में जो शख्सियत रहती है, वह सिपर्फ बॉलीवुड में ही नहीं देश के साहित्यिक कोनों में भी सबसे सम्मानित शख्सियतों में शुमार होती है. बात हो रही है संपूरण सिंह कालरा की, जिन्हें उनके प्रशंसक और कद्रदान गुलजार साहब के नाम से जानते हैं. इन्हीं गुलजार साहब ने हाल ही में 18 अगस्त को अपना 76वां जन्मदिन मनाया. उम्र आखिरी मोड़ पर जा पहुंची है गुलजार साहब की, लेकिन उनकी जिंदादिली, अपने काम के प्रति जुनून और कुछ नया कर गुजरने की चाहत अभी भी उनमें जस की तस बनी हुई है. ये वहीं खूबियां है, जिनके बूते ही गुलजार बॉलीवुड में उस मुकाम तक पहुंचे है, जहां उनका नाम मुंबईयां पिफल्म उद्योग की सबसे सम्मानित और महान शख्सियतों में लिया जाता है.
ब्रिटिश राज के अध्नि भारत के पंजाब के झेलुन जिलें में 18 अगस्त 1936 को जन्में संपूरणसिंह कालरा अर्थात गुलजार का नाम भारतीय सिनेमा के सर्वश्रेष्ठ निर्देशकों की सूची में यूं ही शामिल नहीं किया जाता है. इसके लिए उन्होंने अपनी जिंदगी के पूरे पचास बरस बॉलीवुड की अलग-अलग विधओं को समर्पित किए हैं. खास बात यह है कि गुलजार साहब की प्रतिभा बॉलीवुड की किसी एक विध तक ही साीमित नहीं रही, बल्कि उन्होंने प्रत्येक क्षेत्रा में कामयाबी की इबारतें लिखी. 1963 में बिमल राय की पिफल्म बंदिनी के साथ गुलजार साहब के पिफल्मी कॅरिअर का बतौर गीतकार आगाज हुआ. और अपने पहले ही काम में उन्होंने उस बुलंदी को छू लिया, जिसकी मिसाल आज भी दी जाती है. इस पिफल्म में उनके द्वारा लिखा गया गीत मोरा गोरा रंग लई ले आज भी भारतीय सिनेमा के सर्वश्रेष्ठ गीतों में शुमार किया जाता है. इसी पिफल्म से महान गीतकार एसडी बर्मन के साथ गुलजार साहब का जो रिश्ता बना, तो ताउम्र कायम रहा. इस रिश्ते को सीनियर बर्मन के बेटे आरडी बर्मन ने भी खूब निभाया. बाद के सालों में गुलजार साहब ने जितनी भी पिफल्में निर्देशित की, उन सभी में संगीत आरडी बर्मन ने ही दिया. बतौर निर्देशक अपने कॅरिअर का आगाज गुलजार साहब ने 1971 में आई पिफल्म मेरे अपने से किया. बतौर निर्देशक भी उन्होंने पहली ही पिफल्म में अमिट छोड़ी और यह पिफल्म आज भी भारतीय सिनेमा की क्लासिक पिफल्मों में शुमार होती है. इसके बाद तो सत्तर के दशक में गुलजार का जादू सिर चढ़कर बोला. इस दशक मेंें गुलजार साहब ने परिचय-1972, कोशिश-1972, अचानक-1973, आंधी-1985, मौसम-1975, खूशबू-1975 और किताब-1977 जैसी श्रेष्ठ पिफल्में दी.
गुलजार साहब की महानता सिपर्फ निर्देशक के दायरें तक ही सीमित नहीं है, बल्कि वे बॉलीवुड के सर्वश्रेष्ठ हरपफनमौला गिने जाते हैं. बतौर लेखक, बतौर गीतकार भी गुलजार साहब की उपलब्धियां उन्हें महानतम पिफल्मी शख्सियतों की सूची में सबसे ऊपर रखती है. बतौर गीतकार भी एआर रहमान और विशाल भारद्वाज जैसी हस्तियों के साथ मिलकर उन्होंने छैया छैया, बीड़ी जलाइले जैसे अद्भूत गाने दिए हैं. साठ के दशक में बिमल राय जैसे महान निर्देशक के साथ उन्होंने जितनी सहजता से जुगलबंदी बना ली थी, वही तारतम्य वे भारद्वाज और ए आर रहमान जैसी आध्ुनिक बॉलीवुड की दिग्गज शख्सियतों के साथ भी स्थापित करने में कामयाब रहे हैं. बतौर टेलीविजन लेखक भी गुलजार साहब के नाम पर मोगली का चड्डी पहनके पफूल खिला है जैसी महान रचनाएं शामिल है. असल में गालिब के पक्के भक्त माने जाने वाले गुलजार ने अपनी कलम से बच्चों के लिए भी खूब लिखा है. अपनी बेटी बोस्की से उन्हें बेहद प्यार है, जिनके लिए गुलजार साहब ने उनके बचपन में कविताओं की एक पूरी श्रंखला लिखी थी.
और पिफर गुलजार साहब की महानता इसलिए भी है कि उन्होंने बदलते वक्त के साथ खूद को बखूबी ढाल लिया. न जाने कितनी पिफल्मी हस्तियां बदलते वक्त के साथ सामंजस्य न बना पाने की वजह से भूला दी गई, लेकिन गुलजार साहब आज भी बॉलीवुड की श्रेष्ठ शख्सियतों में गिने जाते हैं, तो सिपर्फ इसीलिए कि उन्होंने बदलते वक्त के साथ बखूबी तालमेल बिठा लिया. यह गुलजार साहब की महानता का प्रमाण ही है कि मोरा गोरा रंग लई ले जैसा महान क्लासिक गीत लिखने के साथ ही वे छैया छैया और बीड़ी जलाइले, कजरारे-कजरारे जैसे चलताउ गाने भी बड़ी श्रेष्ठता के साथ लिख देते हैं.
यही वजह है कि भारतीय सिनेमा को करीब से जानने वाली एक पूरी पीढ़ी गुलजार साहब की प्रतिभा की कायल है. इनमें हम और आप जैसे साधरण सिनेमाप्रेमी ही नहीं बॉलीवुड की कई शख्सियतें भी शामिल है, जो गुलजार को अपना गुरू मानती हैं. इनमें विशाल भारद्वाज, एआर रहमान, सुखविंदरसिंह, संजय गुप्ता, मणिरत्नम, शाद अली, प्रसून जोशी जैसी अलग-अलग विधओं से जुड़ी शख्सियते भी शुमार है, जो अपने काम में कामयाबी के लिए आज भी गुलजार साहब से प्रेरणा लेती है. विशाल भारद्वाज तो पिछले एक दशक से गुलजार साहब के सबसे करीबी चेले बने हुए हैं. ओंकारा, मकबूल, कमीने जैसी क्लासिक पिफल्मों के निर्देशक के तौर पर भले ही विशाल भारद्वाज वर्तमान में बॉलीवुड के सबसे प्रतिभावान निर्देशकों में शुमार होते हैं, लेकिन स्वयं भारद्वाज के लिए उनके गुलजार साहब ही सबकुछ है. आमतौर पर मीडिया से ज्यादा न बतियाने वाले विशाल भारद्वाज कई बार सार्वजनिक तौर पर यह कह चुके हैं कि उनकों निर्देशन में लाने का सबसे ज्यादा श्रेय गुलजार साहब को हीे जाता है. असल में भारद्वाज ने बतौर संगीतकार अपने कॅरिअर की शुरूआत गुलजार साहब की पिफल्म माचिस से की थी. इस पहली ही पिफल्म में गुलजार-भारद्वाज की जुगलबंदी में दर्शकों को चप्पा-चप्पा चरखा चले जैसे श्रेष्ठ गीत की सौगात मिली थी. इसके बाद हूतूतू में भी इस जुगलबंदी की करामात दिखाई दी. भारद्वाज के मुताबिक इन पिफल्मों के बाद गुलजार साहब ने लगभग आध दर्जन पिफल्म पफेस्टिवल के जरिए भारतीय और विश्व सिनेमा की महानतम पिफल्मों से परिचय कराया. इसके बाद ही भारद्वाज ने बतौर निर्देशक खुद को आजमाने का पफैसला किया. भारद्वाज की तरह ही एआर रहमान और सुखविंदरसिंह भी गुलजार साहब के सबसे करीबी लोगों में शुमार होते हैं. रहमान-गुलजार-सुखविंदर की तिकड़ी ने बॉलीवुड को छैया-छैया, जय हो जैसे श्रेष्ठ गाने दिए हैं. एआर रहमान ने भी खुले तौर पर स्वीकार किया है कि बॉलीवुड में उन्होंने जो भी सर्वश्रेष्ठ किया है, उसकी प्रेरणा गुलजार ही रहे हैं. वहीं, संजय गुप्ता जैसा मसाला पिफल्मों का निर्देशक भी गुलजार साहब के सानिध्य में आकर कलात्मक सिनेमा की ओर मुड़ गया. कांटे, मुसापिफर जैसी घनघोर मसाला पिफल्में बनाने वाले संजय गुप्ता की एक पिफल्म दस कहानियां में जब गुलजार एक गीतकार के तौर पर जुड़े तो, वहीं से गुप्ता की पिफल्मों का टेस्ट बदल गया. इसके बाद संजय गुप्ता ने अपने बैनर तले द ग्रेट इंडियन बटरफ्रलाय और पंख जैसी क्लासिक पिफल्में बनाई है. इसी तरह बेहतरीन गीतकारों में गिने जाने वाले प्रसून जोशी भी गुलजार साहब के कायल हैं. प्रसून जोशी के मुताबिक-‘सत्तर साल से ज्यादा की उम्र में भी गुलजार साहब किसी युवा की तरह नजर आते हैं. मुझे हैरानी होती है कि इस उम्र में भी वे कैसे आज के दर्शकों की पसंद के गीत रच लेते हैं.’ प्रसून जोशी का भी मानना है कि विज्ञापन जगत से गीत लेखन में वे गुलजार की प्रेरणा से ही आए थे.
पिफर, गुलजार की गूंज देश से बाहर भी सुनाई देती है. भारतीय सिनेमा के इतिहास के वे इकलौते गीतकार है, जिन्होंने प्रतिष्ठित आस्कर पुरस्कार जीतने का कारनामा कर दिखाया है. पिछले साल जब अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर सराही गई पिफल्म स्लमडॉग मिलिनेयर का पूरी दुनिया में डंका मचा था, तो इसके साथ ही इस पिफल्म में जय हो जैसा श्रेष्ठ गीत लिखने वाले गुलजार साहब का नाम भी सुनहरे अक्षरों में अंकित हो गया. अपनी विनम्रता के चलते गुलजार भले ही इस गीत का पूरा श्रेय अपने साथियों-ए आर रहमान और सुखविंदरसिंह को दे, लेकिन उनके चाहने वाले भलीभांति जानते हैं कि जय हो गीत में सबसे ज्यादा महक गुलजार साहब के शब्दों की ही आती है.
तो, अब यही गुलजार साहब आज 74 बरस के हो गए हैं. लेकिन उनका सफर अभी भी जारी है. एआर रहमान, मणिरत्नम, विशाल भारद्वाज जैसे नई पीढ़ी के सर्वश्रेष्ठ लोगों के साथ उनकी जुगलबंदी आज भी उनके प्रशंसकों का दिल जीत लेती है. इस मौके पर गुलजार साहब के करोड़ों प्रशंसकों के साथ हम भी यही दुआ करेंगे कि आने वाले कई सालों तक उनकी कलम की धार इसी तरह हमारे दिलों को लुभाती रहे.

पुष्पेन्द्र आल्बे

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