महेश भट्ट की फिल्म से जब सुष्मिता सेन ने अपने फिल्मी कॅरिअर की शुरूआत की थी,, तो उन्हें उसी दौरान बॉलीवुड में पदार्पण करने वाली एक और मिस वल्र्ड ऐश्वर्या राय की टक्कर की अभिनेत्री माना गया था. लेकिन ऐश्वर्या ने जहां काम के प्रति अपने समर्पण के चलते बॉलीवुड की ऊंचाईयों को छुआ, वहीं सुष्मिता अपनी जिंदादिली और काम के प्रति लापरवाह नजरिए के चलते बेहद पीछे रह गई. लेकिन अच्छी बात यह है कि उन्होंने कभी इसका अफसोस नहीं जताया, बल्कि वे हमेशा अपने काम को एंजाय करने वाली अभिनेत्रियों में गिनी जाती रही है.
सुष्मिता का यह अंदाज चैतीस साल की उम्र में भी कायम है. इसी का नतीजा है कि उनके साथ वाली रवीना टंडन, करिश्मा कपूर, तब्बू जैसी नायिकाएं जहां घर बसाकर कबकी बॉलीवुड को अलविदा कह चुकी हैं, वहीं सुष का जलवा बॉलीवुड में अब भी बरकरार है. उनके साथ वाली हीरोईने माएं बन चुकी है, लेकिन सुष अभी भी अपने प्रेम प्रसंगों को लेकर सुर्खियों में रहती है. कभी उनका प्रेम प्रसंग रणदीप हुड्डा से चलता है, तो कभी मानव मेनन से. कुछ समय पहले उनका संंबंध दूल्हा मिल गया फिल्म के निर्देशक मुसद्दर अजीज से था. फिर उनकों छोड़कर सुष पाकिस्तान के पूर्व गेंदबाज वसीम अकरम के साथ चली गई.
अब सुष ने अकरम को भी छोड़ दिया है. ऐसे में जब हाल ही में मीडियाकर्मियों ने सुष से सवाल पूछा कि आखिर वे शादी कब करेंगी, तो वे मुस्करा दी. उनका जवाब था-जब मुझे सही जीवनसाथी मिल जाएगा.
वेल, सोच तो अच्छी है उनकी. लेकिन हमारी सलाह यह है कि अब यह सही जीवनसाथी उन्हें लल्द ही ढूंढ लेना चाहिए. कहीं ऐसा न हो इस चक्कर में उनकी जवानी ही ढल जाए.
bollywoodextraa.com
Friday, September 3, 2010
Thursday, September 2, 2010
सदाबहार गुलजार
बांद्रा के प्रतिष्ठित पॉली हिल इलाके के नरगिस दत्त रोड़ पर स्थित बोस्कियाना नामक आशियाना सामने की सड़क से गुजरने वाले उन राहगीरों, जो मुंबईयां पिफल्म इंडस्ट्री में थोड़ी भी दिलचस्पी रखते हैं, का ध्यान बरबस ही अपनी ओर खींच लेता है. इसकी वजह यह है कि बोस्कियाना नामक इस आशियानें में जो शख्सियत रहती है, वह सिपर्फ बॉलीवुड में ही नहीं देश के साहित्यिक कोनों में भी सबसे सम्मानित शख्सियतों में शुमार होती है. बात हो रही है संपूरण सिंह कालरा की, जिन्हें उनके प्रशंसक और कद्रदान गुलजार साहब के नाम से जानते हैं. इन्हीं गुलजार साहब ने हाल ही में 18 अगस्त को अपना 76वां जन्मदिन मनाया. उम्र आखिरी मोड़ पर जा पहुंची है गुलजार साहब की, लेकिन उनकी जिंदादिली, अपने काम के प्रति जुनून और कुछ नया कर गुजरने की चाहत अभी भी उनमें जस की तस बनी हुई है. ये वहीं खूबियां है, जिनके बूते ही गुलजार बॉलीवुड में उस मुकाम तक पहुंचे है, जहां उनका नाम मुंबईयां पिफल्म उद्योग की सबसे सम्मानित और महान शख्सियतों में लिया जाता है.
ब्रिटिश राज के अध्नि भारत के पंजाब के झेलुन जिलें में 18 अगस्त 1936 को जन्में संपूरणसिंह कालरा अर्थात गुलजार का नाम भारतीय सिनेमा के सर्वश्रेष्ठ निर्देशकों की सूची में यूं ही शामिल नहीं किया जाता है. इसके लिए उन्होंने अपनी जिंदगी के पूरे पचास बरस बॉलीवुड की अलग-अलग विधओं को समर्पित किए हैं. खास बात यह है कि गुलजार साहब की प्रतिभा बॉलीवुड की किसी एक विध तक ही साीमित नहीं रही, बल्कि उन्होंने प्रत्येक क्षेत्रा में कामयाबी की इबारतें लिखी. 1963 में बिमल राय की पिफल्म बंदिनी के साथ गुलजार साहब के पिफल्मी कॅरिअर का बतौर गीतकार आगाज हुआ. और अपने पहले ही काम में उन्होंने उस बुलंदी को छू लिया, जिसकी मिसाल आज भी दी जाती है. इस पिफल्म में उनके द्वारा लिखा गया गीत मोरा गोरा रंग लई ले आज भी भारतीय सिनेमा के सर्वश्रेष्ठ गीतों में शुमार किया जाता है. इसी पिफल्म से महान गीतकार एसडी बर्मन के साथ गुलजार साहब का जो रिश्ता बना, तो ताउम्र कायम रहा. इस रिश्ते को सीनियर बर्मन के बेटे आरडी बर्मन ने भी खूब निभाया. बाद के सालों में गुलजार साहब ने जितनी भी पिफल्में निर्देशित की, उन सभी में संगीत आरडी बर्मन ने ही दिया. बतौर निर्देशक अपने कॅरिअर का आगाज गुलजार साहब ने 1971 में आई पिफल्म मेरे अपने से किया. बतौर निर्देशक भी उन्होंने पहली ही पिफल्म में अमिट छोड़ी और यह पिफल्म आज भी भारतीय सिनेमा की क्लासिक पिफल्मों में शुमार होती है. इसके बाद तो सत्तर के दशक में गुलजार का जादू सिर चढ़कर बोला. इस दशक मेंें गुलजार साहब ने परिचय-1972, कोशिश-1972, अचानक-1973, आंधी-1985, मौसम-1975, खूशबू-1975 और किताब-1977 जैसी श्रेष्ठ पिफल्में दी.
गुलजार साहब की महानता सिपर्फ निर्देशक के दायरें तक ही सीमित नहीं है, बल्कि वे बॉलीवुड के सर्वश्रेष्ठ हरपफनमौला गिने जाते हैं. बतौर लेखक, बतौर गीतकार भी गुलजार साहब की उपलब्धियां उन्हें महानतम पिफल्मी शख्सियतों की सूची में सबसे ऊपर रखती है. बतौर गीतकार भी एआर रहमान और विशाल भारद्वाज जैसी हस्तियों के साथ मिलकर उन्होंने छैया छैया, बीड़ी जलाइले जैसे अद्भूत गाने दिए हैं. साठ के दशक में बिमल राय जैसे महान निर्देशक के साथ उन्होंने जितनी सहजता से जुगलबंदी बना ली थी, वही तारतम्य वे भारद्वाज और ए आर रहमान जैसी आध्ुनिक बॉलीवुड की दिग्गज शख्सियतों के साथ भी स्थापित करने में कामयाब रहे हैं. बतौर टेलीविजन लेखक भी गुलजार साहब के नाम पर मोगली का चड्डी पहनके पफूल खिला है जैसी महान रचनाएं शामिल है. असल में गालिब के पक्के भक्त माने जाने वाले गुलजार ने अपनी कलम से बच्चों के लिए भी खूब लिखा है. अपनी बेटी बोस्की से उन्हें बेहद प्यार है, जिनके लिए गुलजार साहब ने उनके बचपन में कविताओं की एक पूरी श्रंखला लिखी थी.
और पिफर गुलजार साहब की महानता इसलिए भी है कि उन्होंने बदलते वक्त के साथ खूद को बखूबी ढाल लिया. न जाने कितनी पिफल्मी हस्तियां बदलते वक्त के साथ सामंजस्य न बना पाने की वजह से भूला दी गई, लेकिन गुलजार साहब आज भी बॉलीवुड की श्रेष्ठ शख्सियतों में गिने जाते हैं, तो सिपर्फ इसीलिए कि उन्होंने बदलते वक्त के साथ बखूबी तालमेल बिठा लिया. यह गुलजार साहब की महानता का प्रमाण ही है कि मोरा गोरा रंग लई ले जैसा महान क्लासिक गीत लिखने के साथ ही वे छैया छैया और बीड़ी जलाइले, कजरारे-कजरारे जैसे चलताउ गाने भी बड़ी श्रेष्ठता के साथ लिख देते हैं.
यही वजह है कि भारतीय सिनेमा को करीब से जानने वाली एक पूरी पीढ़ी गुलजार साहब की प्रतिभा की कायल है. इनमें हम और आप जैसे साधरण सिनेमाप्रेमी ही नहीं बॉलीवुड की कई शख्सियतें भी शामिल है, जो गुलजार को अपना गुरू मानती हैं. इनमें विशाल भारद्वाज, एआर रहमान, सुखविंदरसिंह, संजय गुप्ता, मणिरत्नम, शाद अली, प्रसून जोशी जैसी अलग-अलग विधओं से जुड़ी शख्सियते भी शुमार है, जो अपने काम में कामयाबी के लिए आज भी गुलजार साहब से प्रेरणा लेती है. विशाल भारद्वाज तो पिछले एक दशक से गुलजार साहब के सबसे करीबी चेले बने हुए हैं. ओंकारा, मकबूल, कमीने जैसी क्लासिक पिफल्मों के निर्देशक के तौर पर भले ही विशाल भारद्वाज वर्तमान में बॉलीवुड के सबसे प्रतिभावान निर्देशकों में शुमार होते हैं, लेकिन स्वयं भारद्वाज के लिए उनके गुलजार साहब ही सबकुछ है. आमतौर पर मीडिया से ज्यादा न बतियाने वाले विशाल भारद्वाज कई बार सार्वजनिक तौर पर यह कह चुके हैं कि उनकों निर्देशन में लाने का सबसे ज्यादा श्रेय गुलजार साहब को हीे जाता है. असल में भारद्वाज ने बतौर संगीतकार अपने कॅरिअर की शुरूआत गुलजार साहब की पिफल्म माचिस से की थी. इस पहली ही पिफल्म में गुलजार-भारद्वाज की जुगलबंदी में दर्शकों को चप्पा-चप्पा चरखा चले जैसे श्रेष्ठ गीत की सौगात मिली थी. इसके बाद हूतूतू में भी इस जुगलबंदी की करामात दिखाई दी. भारद्वाज के मुताबिक इन पिफल्मों के बाद गुलजार साहब ने लगभग आध दर्जन पिफल्म पफेस्टिवल के जरिए भारतीय और विश्व सिनेमा की महानतम पिफल्मों से परिचय कराया. इसके बाद ही भारद्वाज ने बतौर निर्देशक खुद को आजमाने का पफैसला किया. भारद्वाज की तरह ही एआर रहमान और सुखविंदरसिंह भी गुलजार साहब के सबसे करीबी लोगों में शुमार होते हैं. रहमान-गुलजार-सुखविंदर की तिकड़ी ने बॉलीवुड को छैया-छैया, जय हो जैसे श्रेष्ठ गाने दिए हैं. एआर रहमान ने भी खुले तौर पर स्वीकार किया है कि बॉलीवुड में उन्होंने जो भी सर्वश्रेष्ठ किया है, उसकी प्रेरणा गुलजार ही रहे हैं. वहीं, संजय गुप्ता जैसा मसाला पिफल्मों का निर्देशक भी गुलजार साहब के सानिध्य में आकर कलात्मक सिनेमा की ओर मुड़ गया. कांटे, मुसापिफर जैसी घनघोर मसाला पिफल्में बनाने वाले संजय गुप्ता की एक पिफल्म दस कहानियां में जब गुलजार एक गीतकार के तौर पर जुड़े तो, वहीं से गुप्ता की पिफल्मों का टेस्ट बदल गया. इसके बाद संजय गुप्ता ने अपने बैनर तले द ग्रेट इंडियन बटरफ्रलाय और पंख जैसी क्लासिक पिफल्में बनाई है. इसी तरह बेहतरीन गीतकारों में गिने जाने वाले प्रसून जोशी भी गुलजार साहब के कायल हैं. प्रसून जोशी के मुताबिक-‘सत्तर साल से ज्यादा की उम्र में भी गुलजार साहब किसी युवा की तरह नजर आते हैं. मुझे हैरानी होती है कि इस उम्र में भी वे कैसे आज के दर्शकों की पसंद के गीत रच लेते हैं.’ प्रसून जोशी का भी मानना है कि विज्ञापन जगत से गीत लेखन में वे गुलजार की प्रेरणा से ही आए थे.
पिफर, गुलजार की गूंज देश से बाहर भी सुनाई देती है. भारतीय सिनेमा के इतिहास के वे इकलौते गीतकार है, जिन्होंने प्रतिष्ठित आस्कर पुरस्कार जीतने का कारनामा कर दिखाया है. पिछले साल जब अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर सराही गई पिफल्म स्लमडॉग मिलिनेयर का पूरी दुनिया में डंका मचा था, तो इसके साथ ही इस पिफल्म में जय हो जैसा श्रेष्ठ गीत लिखने वाले गुलजार साहब का नाम भी सुनहरे अक्षरों में अंकित हो गया. अपनी विनम्रता के चलते गुलजार भले ही इस गीत का पूरा श्रेय अपने साथियों-ए आर रहमान और सुखविंदरसिंह को दे, लेकिन उनके चाहने वाले भलीभांति जानते हैं कि जय हो गीत में सबसे ज्यादा महक गुलजार साहब के शब्दों की ही आती है.
तो, अब यही गुलजार साहब आज 74 बरस के हो गए हैं. लेकिन उनका सफर अभी भी जारी है. एआर रहमान, मणिरत्नम, विशाल भारद्वाज जैसे नई पीढ़ी के सर्वश्रेष्ठ लोगों के साथ उनकी जुगलबंदी आज भी उनके प्रशंसकों का दिल जीत लेती है. इस मौके पर गुलजार साहब के करोड़ों प्रशंसकों के साथ हम भी यही दुआ करेंगे कि आने वाले कई सालों तक उनकी कलम की धार इसी तरह हमारे दिलों को लुभाती रहे.
पुष्पेन्द्र आल्बे
Wednesday, September 1, 2010
सुष्मिता के फंडे
महेश भट्ट की फिल्म से जब सुष्मिता सेन ने अपने फिल्मी कॅरिअर की शुरूआत की थी,, तो उन्हें उसी दौरान बॉलीवुड में पदार्पण करने वाली एक और मिस वल्र्ड ऐश्वर्या राय की टक्कर की अभिनेत्री माना गया था. लेकिन ऐश्वर्या ने जहां काम के प्रति अपने समर्पण के चलते बॉलीवुड की ऊंचाईयों को छुआ, वहीं सुष्मिता अपनी जिंदादिली और काम के प्रति लापरवाह नजरिए के चलते बेहद पीछे रह गई. लेकिन अच्छी बात यह है कि उन्होंने कभी इसका अफसोस नहीं जताया, बल्कि वे हमेशा अपने काम को एंजाय करने वाली अभिनेत्रियों में गिनी जाती रही है.
सुष्मिता का यह अंदाज चैतीस साल की उम्र में भी कायम है. इसी का नतीजा है कि उनके साथ वाली रवीना टंडन, करिश्मा कपूर, तब्बू जैसी नायिकाएं जहां घर बसाकर कबकी बॉलीवुड को अलविदा कह चुकी हैं, वहीं सुष का जलवा बॉलीवुड में अब भी बरकरार है. उनके साथ वाली हीरोईने माएं बन चुकी है, लेकिन सुष अभी भी अपने प्रेम प्रसंगों को लेकर सुर्खियों में रहती है. कभी उनका प्रेम प्रसंग रणदीप हुड्डा से चलता है, तो कभी मानव मेनन से. कुछ समय पहले उनका संंबंध दूल्हा मिल गया फिल्म के निर्देशक मुसद्दर अजीज से था. फिर उनकों छोड़कर सुष पाकिस्तान के पूर्व गेंदबाज वसीम अकरम के साथ चली गई.
अब सुष ने अकरम को भी छोड़ दिया है. ऐसे में जब हाल ही में मीडियाकर्मियों ने सुष से सवाल पूछा कि आखिर वे शादी कब करेंगी, तो वे मुस्करा दी. उनका जवाब था-जब मुझे सही जीवनसाथी मिल जाएगा.
वेल, सोच तो अच्छी है उनकी. लेकिन हमारी सलाह यह है कि अब यह सही जीवनसाथी उन्हें लल्द ही ढूंढ लेना चाहिए. कहीं ऐसा न हो इस चक्कर में उनकी जवानी ही ढल जाए.
अमिताभ की प्राइवेसी
अमिताभ बच्चन को भले ही देशभर के सिनेमा प्रेमी अपने दिल का सरताज बनाकर रखते हो, लेकिन अमिताभ इसकी परवाह न करते हुए गाहे-बगाहे कुछ ऐसी हरकतें कर देते हैं, जिससे उनके ऊंचे कद और महिमामंडन पर सवालिया निशान खड़े हो जाते हैं. याद कीजिए कुछ साल पहले की बात जब अमिताभ अमरसिंह के सहारे समाजवादी हुआ करते थे. उस दौर में अमिताभ ने गांधी-नेहरू परिवार के बारे में एक विवादास्पद टिप्पणी करते हुए गांधी परिवार को राजा और खुद के परिवार को रंक बताया था. और अब अमिताभ ने एक बार फिर अपने एक कृत्य से विवाद खड़ा कर दिया है. असल में इन दिनों मंुबई शहर में मेट्रो रेल परियोजना का काम पूरे जोर-शोर से चल रहा है. अगर आप मुंबई जाएं, तो किधर का भी रास्ता चुने, मेट्रो का काम हर तरफ चलता दिखाई देगा. अनिल अंबानी की कंपनी इस मेट्रों परियोजना को मुंबई में साकार करने के लिए दिन-रात जुटी हुई है. यह परियोजना पूरे मुंबई के लिए जरूरी है, क्यांेकि इससे ट्रॉफिक से बदहाल हो चुके महानगर की आवागमन की समस्या पूरी तरह से हल हो जाएगी. इससे उन लाखों लोगों को रोज-रोज ट्राफिक की दिक्कतों से जूझना नहीं पड़ेगा.
लेकिन महानायक का दर्जा रखने वाले अमिताभ को आम मुंबईकर की दिक्कतों से कोई लेना-देना नहीं है. असल में मेट्रो का एक हिस्सा अमिताभ के घर प्रतीक्षा के सामने से भी गुजरेगा. बस इसी को लेकर अमिताभ ने रोना रो दिया कि इससे उनकी प्राइवेसी भंग हो जाएगी. अमिताभ का यह कहना था कि राजनीतिक पार्टियों सहित मुंबईकर भी उनके खिलाफ हो गए. सवाल पूछे जाने लगे कि अमिताभ को अपनी प्राइवेसी की ज्यादा चिंता है या फिर मुंबई के विकास की.
याद कीजिए 2001 में भी एक ऐसा ही विवाद खड़ा हुआ था, जब स्वर साम्राज्ञी लता मंगेशकर ने अपने घर के सामने प्लाईओवर बनने का पुरजोर विरोध किया था. लता दी तो यह मामला संसद तक ले गई थी. इसका नतीजा यह निकला कि लता दी के घर के सामने का पेडर रोड़ आज तक विकास के लिए तरस रहा है.
अब अमिताभ भी यही चाहते हैं कि मुंबई का विकास भले हीे नह हो, लेकिन उनकी प्राइवेसी में खलल नहीं पड़नी चाहिए. अफसोस कि ऐसा सोचते वक्त ये सितारे यह भूल जाते हैं कि यह मुंबई ही है, जिन्होंने इनकों सर माथे पर बिठाया है.
Tuesday, August 31, 2010
मोदी को किंग खान की ना
बॉलीवुड में कोई किसी का सगा नहीं होता. समय-समय पर यह बात साबित होती ही रहती है. ऐसा ही कुछ कड़वा अनुभव हाल ही में आईपीएल के पूर्व कमिश्नर ललित मोदी को हुआ. जब भारत के क्रिकेट गलियारों में मोदी का सिक्का चलता था, तो विजय माल्या जैसे उद्योगपति के साथ ही शिल्पा शेट्टी,, प्रिटी जिंटा और शाहरूख खान जैसे बॉलीवुड के सितारे भी उनके आगे-पीछे मंडराते थे. आईपीएल के पहले तीन सत्रों में पूरी दुनिया के क्रिकेटप्रेमियों ने देखा कि किस तरह ये बॉलीवुड सितारे मोदी की चापलुसी में लगे रहते थे. खबरे तो यह तक है कि मोदी की दखलअंदाजी के चलते ही शाहरूख, शिल्पा और प्रिटी जिंटा आईपीएल की टीमें खरीद पाएं.
लेकिन यह सब पुरानी बाते हैं. वर्तमान में हकीकत यह है कि भ्रष्टाचार के आरोपों के चलते मोदी आईपीएल से निष्कासित किए जा चुके है.ं अब आईपीएल की चमक-धमक तो रही नहीं मोदी के आस-पास, सो इन मतलबी बॉलीवुड सितारों ने भी उनसे मुंह फेर लिया है. इसका अनुभव हाल ही में मोदी को तबे हुआ, जब उन पर परसेप्ट पिक्चर कंपनी ने एक पिक्चर बनाने की सोची. इस पिक्चर में मुख्य भूमिका के लिए शाहरूख का नाम लिया गया. मोदीे ने खुद किंग खान से गुजारिश की, कि वे पिक्चर में उनका रोल कर लें. लेकिन शाहरूख ने मोदी को सिरे से मना कर दिया.
जाहिर है, शाहरूख अब डूब चुके मोदी के साथ कोई ताल्लुक नहीं रखना चाहते हैं. आईपीएल में उनकी कोलकता की टीम वैसे ही सबसे फिसड्डी है. ऐसे में वे मोदी से करीबी दिखाकर बीसीसीआई को नाराज नहीं करना चाहते. इसीलिए किंग खान ने फायदे के लिए दोस्ती को अंगूठा दिखाते हुए मोदी को सिरे से मना कर दिया.
जॉन-बिपाशा का टिकाउ रिश्ता
ऐसे में जबकि बॉलीवुड में प्रेम संबंध हर शुक्रवार को बदल जाया करते हैं और करीना, शाहिद, प्रियंका, अक्षय, कैटरीना, सलमान, दीपिका, रणबीर जैसे कलाकार थोड़े समय के टाइमपास के बाद ही अपने प्रेमी-प्रेमिकाओं को भी बदल डालते हैं, बॉलीवुड में जॉन अब्राहम और बिपाशा बासु के बीच का प्यार कई बरसों के बाद भी ज्यों का त्यों बना हुआ है. इसीलिए उन्हें अगर बॉलीवुड का सबसे समर्पित प्रेमी जोड़ा कहा जाएं, तो अतिश्योक्ति नहीं होगी. जॉन अब्राहम से पहले बिपाशा की जिंदगी में डीनो मारिया आए थे. हालांकि उस वक्त बिपाशा ने भी प्रेमी बदलने के बॉलीवुड टेªंड पर चलते हुए ही डीनों को अलविदा कह दिया था, लेकिन जब से जॉन उनकी जिंदगी में आए है यह बंगाली बाला गजब की वफादारी दिखा रही है. इस दौरान दोनों के संबधों के बीच कई तरह के मोड़, तूफान आए, कई बार उनके अलगाव की खबरें भी आइ्र्र, लेकिन उन्होंने अपने रिश्ते में वफादारी हमेशा बनाए रखी है. शायद इसकी सबसे बड़ी वजह यह है कि बिपाशा और जॉन दोनों ही अपने संबंध को लेकर पूरी तरह से ईमानदारी बरतते हैं. जॉन के साथ काम करने वाली हीरोईनों से बिपाशा को कोई दिक्कत नहीं होती, और यही नजरिया बिपाशा के बारे में जॉन भी रखते हैं. इसी का नतीजा है कि कई बरस गुजर जाने के बाद भी वे दोनों अपने रिश्ते कोे बनाए रखने में कामयाब है.
इसलिए कहा जा सकता है कि हर शुक्रवार को बदलते रिश्तों के बीच जॉन-बिपाशा का रिश्ता फेविकोल की तरह टिकाउ है. ऐसे में अगर बिपाशा कहती है कि जॉन के साथ रहते हुए उन्हें विवाह करने की कोई जरूरत ही महसूस नहीं होती, तो इसमें कुछ भी गलत नहीं है. आखिर किसी भी रिश्ते के कामयाब होने के लिए सबसे जरूरी एकदूसरे पर भरोसा होता है. यह खूबी उन दोनों के रिश्ते में है. तो फिर उन्हें विवाह जैसे बंधन की जरूरत भी नही.
Monday, August 30, 2010
रोते-गाते सितारे
एक दौर था, जब फिल्म इंडस्ट्री के नायक-नायिका ज्यादा से ज्यादा इस बात की कोशिश में लगे रहते थे कि दर्शकों के सामने वे ज्यादा दिखाई न दे. इस ओवरएक्सपोजर से वे खासे डरते थे. कहीं कार्यक्रम में जाना है, बाजार में बीवी-बच्चों के साथ घूमने जाना है तो विग पहनकर जाओ, मूंछे लगाकर जाओ. याने कि ऐसे हो जाओं कि कोई भूलकर भी पहचान न पाएं.
लेकिन अब दौर बदल गया है. आजकल के नायक-नायिका फिल्मों में तो कम नजर आते हैं, लेकिन विज्ञापनो, पत्रकार वार्ताओं और न जाने कौन-कौन से तरीकों से प्रचार में बने रहते हैं. अब ज्यादा से ज्यादा वक्त तक दर्शकों के दिलो-दिमाग में बने रहना ही हर हीरो-हीरोईन की पहली प्राथमिकता होती है.
इसीलिए आजकल ये लोग छोटे पर्र्दे पर आने से भी परहेज नहीं करते. हाल ही में टीवी सेट के सामने नजर गढ़ाई तो तीन हीरो-हीरोईने खुलेआम रोते दिखाई दिए. जी हां, वे कैमरे के सामने ही रो रहे थे. सबसे पहले देखा दीपिका पादुकोण को. अपनी फिल्म लफंगे परींदे के प्रमोशन के लिए वे एक रियलिटी शो में गई थी. वहीं एक गायक ने एक ऐसा गाना गा दिया, जो दीपिका के दिेल के बहुत करीब था. बस वे रियलिटी शो के दौरान ही रो पड़ी. खबरिया चैनलों ने तत्काल नमक-मिर्च लगाकर दर्शकों को परोस दिया कि दीपिका को तो रणबीर कपूर की याद आ गई थी, बस इसीलिए रो पड़ी बेचारी.
इसके बाद देखा सोनाली सिन्हा को. शत्रुध्न सिन्हा की यह बीटिया दबंग फिल्म से सलमान खान के साथ अपनी फिल्मी पारी शुरू कर रही है. फिल्म रिलीज होने वाली है, सो वे भी एक रियलिटी शों में अपनी मां के साथ जा पहुंची. तो, दीपिका की तरह ही सोनाक्षी भी इस शो में रो पड़ी. वजह बाद में उन्होंने खुद ही बता दी कि इस शो में मां के उपर एक गाना सुनकर उनकी आंखों में आंसू आ गए. खबरिया चैनलों ने इस खबर को इस तरह दिखाया कि मां की बात तो फिजूल है, शायद सोनाक्षी को अपने किसी ब्वॉयफ्रेंड की याद आ गई होगी.
इसके बाद टीवी पर्दे पर दिखे सलमान खान. दबंग सलमान खान की पुरानी तस्वीरे एक खबरियां चैनल दिखा रहा था, जिसमें वे आंसू बहाते नजर आ रहे थे. टीवी वालों ने झटपट नमक-मिर्च लगा दी कि साहब कैटरीना तो सलमान की जिंदगी से तभी बाहर जा चुकी थी, जब इन तस्वीरों में वे रोते दिखाई दिए थे.
यानी कि आजकल रोकर लोकप्रियता बटोरना फिल्मी सितारों का नया शगल बन गया है. टीवी चालू कीजिए आपको भी कोई न कोई हीरो-हीरोईन तो रोते दिख ही जाएंगे.
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